🌿प्रेम मसीहा का महायज्ञ🌿
प्रेम मसीहा सच्ची श्रद्धा एवं सच्चे प्रेम को ही भक्ति का मूल आधार बताते हैं। एक बार उनके पास कुछ समृद्ध एवं धनी व्यापारी आये। सभी के पास भरपूर राशन था। उनमें से एक ने कहा : हे विश्व शांतिदूत, प्रेम मसीहा, हम एक यज्ञ का संकल्प लेकर आये हैं। हम चाहते हैं कि यज्ञ में पहली आहुति आप ही डालें ताकि हमारा यज्ञ सफल हो।
प्रेम मसीहा ने कहा : यज्ञ जरूर होगा। कल सवेरे आप सभी यज्ञ में होम करने के लिए बढ़िया वस्तुएं लेकर आना। मैं कल आपको यज्ञ के माध्यम से साक्षात हृदय सम्राट के देवों का दर्शन कराऊंगा।
अगले दिन सुबह सवेरे उनके पास यज्ञ के लिए बढ़िया सामग्री, जिसमें खाद्य सामग्री से हलवा, खीर, पूड़ी और शब्जी आदि व्यंजन तैयार करा दिए। इसके बाद उन्होंने आस-पास के इलाके के गरीब और अभावग्रस्त बच्चे और लोगों को आमंत्रित किया। उन सभी को बैठाया और फिर व्यापारियों से बोले : इन सबको सम्मान, सच्ची श्रद्धा और प्रेम के साथ भोजन कराओ। यह अनुभव करो कि तुम यज्ञ में सच्ची श्रद्धा एवं सच्चे प्रेम से आहुतियां डाल रहे हो। अपने मन में किसी भी किस्म का राग-द्वेष मत आने दो। यह सोचो कि सभी अभावग्रस्त और दो वक्त की रोटी को तरसते ये नन्हें प्यारे बच्चे एवं लोग साक्षात देवता बनकर आहुतियां ग्रहण कर रहे हैं। व्यापारियों ने उनकी बात मान कर ऐसा ही किया। उन्हें वाकई असीम संतोष और अद्भुत शांति एवं आनंद का अनुभव हुआ।
सभी धनी व्यक्तियों और अभावग्रस्त बच्चे एवं लोगों के चेहरों पर प्रसन्नता देखकर प्रेम मसीहा बोले : जब किसी भूखे असहाय व्यक्ति को भोजन देकर उसकी भूख तृप्त की जाती है, उस समय उसके हृदय से निकला कृतज्ञता का भाव परमात्मा का आशीर्वाद होता है। ऐसा सेवा भाव हृदय में शांति का अनुभव करवा कर मनुष्य जीवन को सत्-चित्-आनंद् से सफल करता है। इसी मानवता के सेवा भाव को ही हृदय के यज्ञों का यज्ञ, महायज्ञ कहते हैं।
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