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Wednesday, June 14, 2017

महाअवतार बाबाजी का संदेश :-योगी कथामृत

अनेकों के दोष के कारण सभी को दोषी मत मानो। इस जगत में हर चीज मिश्रित रूप में है शक्कर और रेत के मिश्रण की तरह चींटी की भांति बुद्धिमान बनो जो केवल शक्कर के गुणों को चुन लेती है और रेत के कणों को स्पर्श किए बिना छोड़ देती है।

लाहिड़ी महाशय का संदेश :- योगी कथामृत

लाहिड़ी महाशय स्वयं एक दृष्टि योगी थे और उन्होंने जो संदेश इस संसार को दिया वह आज के संसार की आवश्यकता शिक्षाओं के अनुरूप ही है प्राचीन भारत की उच्च कोटि की आर्थिक और धार्मिक परिस्थितियां अब नहीं रही इसीलिए भिक्षापात्र लिए भ्रमण करते रहने वाले योगी के प्राचीन आदर्श को उन्होंने प्रस्थान नहीं दिया बल्कि उन्होंने इस बात को अधिक लाभदायक बताते हुए उसी पर जोर दिया कि योगी को अपनी आजीविका का स्वयं उपार्जन करना चाहिए उसे पहले ही हार के नीचे दबे समाज पर अपने पोषण का और बोझ नहीं डालना चाहिए तथा अपने घर के एकांत में ही उसे योग साधना करनी चाहिए इस उपदेश में उन्होंने स्वयं अपना ही चल अनुदान जोड़ कर उसे और भी अधिक बल प्रदान किया वह एक ऐसे आदर्श आधुनिक योगी थे जिन्होंने आधुनिक समय की आवश्यकता ओं का ध्यान रखते हुए अनंत की साधना के महत्वपूर्ण अंगों को स्वयं ही तिलांजलि दे दी।

Monday, June 12, 2017

Everything to know before you Traveling to the Haridwar and Rishikesh in Uttarakhand

When you go in the month of June try to avoid the period of summer vacation.

When you go in the month of June please pre book your accommodation before you leave for Haridwar and Rishikesh.

If you are going with your car then always keep full tank fuel in your car.

Try to avoid the roadside dhaba and restaurant for eating.

Always keep some eatables in your bag and in your car.

Friday, June 2, 2017

एक बेटी का पिता

एक बेटी का पिता.....
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एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई, लड़का बड़े अच्छे घर से था तो पिता बहुत खुश हुए। लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव बड़ा अच्छा था तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया।

एक दिन शादी से पहले लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया। पिता की तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी वह ना न कह सके। लड़के वालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया। फ़िर लडकी के पिता के लिए चाय आई शुगर कि वजह से लडकी के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था।

लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली। चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चोक से गये, चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी और इलायची भी डली हुई थी। वो सोच मे पड़ गये की ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं। दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा, दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चादर।

उठते ही सोंफ का पानी पीने को दिया गया। वहाँ से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे - मुझे क्या खाना है, क्या पीना है, मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है ? ये परफेक्टली आपको कैसे पता है ? तो बेटी कि सास ने धीरे से कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था।

ओर उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं बोलेंगे कुछ नहीं, प्लीज अगर हो सके तो आप उनका ध्यान रखियेगा। पिता की आंखों मे वहीँ पानी आ गया था। लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया।

जब पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो ? ?
तो लडकी का पिता बोले - मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से कहीं नहीं गयी है, बल्कि वो तो मेरी बेटी के रुप में इस घर में ही रहती है। और फिर पिता की आंखों से आंसू झलक गये ओर वो फफक कर रो पड़े।

दुनिया में सब कहते हैं ना ! कि बेटी है, एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी। मगर मैं दुनिया के सभी माँ-बाप से ये कहना चाहता हूँ की बेटी कभी भी अपने माँ-बाप के घर से नहीं जाती। बल्कि वो हमेशा उनके दिल में रहती है।            

पतन का कारण

👌🏼 *पतन का कारण* :

श्रीकृष्ण ने एक रात को स्वप्न में देखा कि, एक गाय अपने नवजात बछड़े को प्रेम से चाट रही है।  चाटते-चाटते वह गाय, उस बछड़े की कोमल खाल को छील देती है । उसके शरीर से रक्त निकलने लगता है । और वह बेहोश होकर, नीचे गिर जाता है। श्रीकृष्ण प्रातः यह स्वप्न,जब भगवान श्री नेमिनाथ को बताते हैं । तो, भगवान कहते हैं कि :-

यह स्वप्न, पंचमकाल (कलियुग) का लक्षण है ।

कलियुग में माता-पिता, अपनी संतान को,इतना प्रेम करेंगे, उन्हें सुविधाओं का इतना व्यसनी बना देंगे कि, वे उनमें डूबकर, अपनी ही हानि कर बैठेंगे। सुविधा, भोगी और कुमार्ग - गामी बनकर विभिन्न अज्ञानताओं में फंसकर अपने होश गँवा देंगे।

आजकल हो भी यही रहा है। माता पिता अपने बच्चों को, मोबाइल, बाइक, कार, कपड़े, फैशन की सामग्री और पैसे उपलब्ध करा देते हैं । बच्चों का चिंतन, इतना विषाक्त हो जाता है कि, वो माता-पिता से झूठ बोलना, बातें छिपाना,बड़ों का अपमान करना आदि सीख जाते हैं ।

☝🏼 *याद रखियेगा !* 👇🏽

*संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है।*
*सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए।*
*पर संस्कार नहीं दिए तो वे जिंदगी भर रोएंगे।*

महाभारत

महाभारत I महाभारत में अर्जुन ने लडाई से इंकार कर दिया और भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए उसके विभिन्न शंकाओं का निराकरण करना शुरु किया जिससे वह इस लडाई में हिस्सा लेने को तैयार हो जाए I भगवान के सभी वचनों को संयोजन गीता के अध्याय दर अध्याय अर्जुन को समझाने के पश्चात भी उसके तमाम शंकाओं का निराकरण तब तक संम्भव न हो सका जबतक उसने भगवान श्रीकृष्ण के असली स्वरूप का दर्शन न हुआ I और जैसे ही अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप का साक्षात्कार हुआ, उसके सभी प्रश्न, उसकी सभी शंकाएं स्वत: समाप्त हो गयीं और वह क्या कहता है........)
_ जब साक्षात्कार हुआ तो अर्जुन क्या कहता है....? “मुझे माफ़ करना, मैं नहीं जानता था कि आप कौन हैंI मैं तो समझता था कि आप मेरे मित्र हैं, मैं आपके साथ बैठता था, मुझे माफ़ करना मैं नहीं जानता था कि आप कौन है”I"
एक तो यह बात समझो कि- कैसे नहीं मालुम था अर्जुन को कि वे कौन हैं? जिसके अन्दर सारा संसार समाया हुआ है और जो सारे ब्रह्माण्ड में समाया हुआ है, उसके साथ बैठने के बाद भी अर्जुन को नहीं मालुम था कि वे कौन हैं? अरे.....! कुछ तो लीक हो जाता न! इधर..... उधर! पर कुछ नहीं हुआI कोई खबर नहीं, पर जब साक्षात्कार हुआ और जब वह जान गया, ‘मान नहीं’..., ‘जान गया’ तब लडाई के लिए तो तैयार हो ही गया पर उससे पहले कहता है.... क्या? कि “मुझे माफ़ कर दो! मुझे नहीं मालुम था कि आप कौन हैंI”
यही साक्षात्कार का होना ही इस जिंदगी में ज्ञान को पाना है, क्योंकि तुम कहीं भी हो, किसी भी लडाई में हो, अर्जुन को तो सिर्फ एक लडाई लड़नी थी, तुमको तो कई लडाई लड़नी हैI ....नहीं? तुम्हारी तो कितनी महाभारत पड़ी है- बीवी के साथ महाभारत, पति के साथ महाभारत, सास के साथ महाभारत, बेटे के साथ महाभारत, पडोसी के साथ महाभारत, गवर्नमेंट के साथ महाभारत और जो बिजिनेस करने वाले हैं उनको तो टैक्स डिपार्टमेंट के साथ महाभारत करनी ही हैI तो कितनी ही

रामायण कथा का एक अंश

*रामायण कथा का एक अंश*
जिससे हमे *सीख* मिलती है *"एहसास"* की...
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*श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया* चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे,
राह बहुत *पथरीली और कंटीली* थी !
की यकायक *श्री राम* के चरणों मे *कांटा* चुभ गया !

श्रीराम *रूष्ट या क्रोधित* नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से *अनुरोध* करने लगे !
बोले- "माँ, मेरी एक *विनम्र प्रार्थना* है आपसे, क्या आप *स्वीकार* करेंगी ?"

*धरती* बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !"

प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप *नरम* हो जाना !
कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना !
मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे *आघात* मत करना"

श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई !
पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ?
जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें ?
फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी *व्याकुलता* क्यों ?"

*श्री राम* बोले- "नही...नही माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसके *हृदय* को विदीर्ण कर देगा !"

*"हृदय विदीर्ण* !! ऐसा क्यों प्रभु ?",
*धरती माँ* जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं !

"अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि...इसी *कंटीली राह* से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये *शूल* उनके पगों मे भी चुभे होंगे !
मैया, मेरा भरत कल्पना मे भी मेरी *पीड़ा* सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप *कमल पंखुड़ियों सी कोमल* बन जाना..!!"

अर्थात
*रिश्ते* अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं ।
जहाँ *गहरी आत्मीयता* नही, वो रिश्ता शायद नही परंतु *दिखावा* हो सकता है ।
🔰🔰
इसीलिए कहा गया है कि...
*रिश्ते*खून से नहीं, *परिवार* से नही,
*मित्रता* से नही, *व्यवहार* से नही,
बल्कि...
सिर्फ और सिर्फ *आत्मीय "एहसास"* से ही बनते और *निर्वहन* किए जाते हैं।
जहाँ *एहसास* ही नहीं,
*आत्मीयता* ही नहीं ..
वहाँ *अपनापन* कहाँ से आएगा l
     

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