लाहिड़ी महाशय स्वयं एक दृष्टि योगी थे और उन्होंने जो संदेश इस संसार को दिया वह आज के संसार की आवश्यकता शिक्षाओं के अनुरूप ही है प्राचीन भारत की उच्च कोटि की आर्थिक और धार्मिक परिस्थितियां अब नहीं रही इसीलिए भिक्षापात्र लिए भ्रमण करते रहने वाले योगी के प्राचीन आदर्श को उन्होंने प्रस्थान नहीं दिया बल्कि उन्होंने इस बात को अधिक लाभदायक बताते हुए उसी पर जोर दिया कि योगी को अपनी आजीविका का स्वयं उपार्जन करना चाहिए उसे पहले ही हार के नीचे दबे समाज पर अपने पोषण का और बोझ नहीं डालना चाहिए तथा अपने घर के एकांत में ही उसे योग साधना करनी चाहिए इस उपदेश में उन्होंने स्वयं अपना ही चल अनुदान जोड़ कर उसे और भी अधिक बल प्रदान किया वह एक ऐसे आदर्श आधुनिक योगी थे जिन्होंने आधुनिक समय की आवश्यकता ओं का ध्यान रखते हुए अनंत की साधना के महत्वपूर्ण अंगों को स्वयं ही तिलांजलि दे दी।
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