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Wednesday, May 31, 2017

चरणामृत का महत्व

.                   📝 चरणामृत का महत्व 👣💧
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💒 अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते हैं, क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की कि चरणामृतका क्या महत्व है.?

📚❋ ━━► शास्त्रों में कहा गया है —

          "अकाल मृत्यु हरणं, सर्वव्याधि विनाशनम्।
          विष्णो: पादोदकं पीत्वा, पुनर्जन्म न विद्यते॥"

📖 "अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियों का शमन करने वाला है, तथा औषधी के समान है।
💧 जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता॥"

जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता, जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है।

❋━━► जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए, और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे, तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया।

💧 वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहाँ से पात्र शक्ति है भगवान के चरणों की जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढ़ाया था पर चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी।

👬 जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते है तो कहते हैं-
👣 "चरणों से निकली गंगा प्यारी, जिसने सारी दुनिया तारी",

📚 धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है।

💧 चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है।

📚 कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।

💧चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है। चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।

📚 आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।

🌿❋━━► इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है।

🌿❋━━► तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए।

🌿❋━━► ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।

📚 इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है। कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ का या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है।

👣💧इसीलिए चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये।

👣❋━━► लेकिन चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं। चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं.?

📚 दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।

😇 कहते हैं इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं, बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है।

💧इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।

         

Wednesday, May 17, 2017

Meditation

*ध्यान* *(Meditation) क्यों करना* *चाहिए* ?

*ध्यान* *(Meditation) में क्या* *ताकत है* ?

*साधना का क्या महत्व है*....?

जब १०० लोग एक साथ साधना करते है तो उससे उत्पन्न लहरें
५ कि.मी. तक फैलती है !
यह नकारात्मकता शक्ति को नष्ट कर ,
सकारात्मकता का निर्माण करती है ।

विश्व विख्यात आईस्टांईन नें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहा था ...

एक अणु के विधटन से लगत के अणुओ का विधटन होता है !

आज हम इसे हम  *अणु विस्फोट* कहते है !

यही सुत्र हमारे पुर्वज ऋषि , मुनियों ने हमें हजारों साल पहले दिया है ।

आज पृथ्वी पर केवल ४% लोंग ही ध्यान करते है , बचे ९६% लोंगो को इसकी पॉजिटिव इफेक्ट मिलती है।

अगर हम भी लगातार ९० दिनो तक ध्यान करे तो इसका सकारात्मक प्रभाव हमे और हमारे परिवार
पर दिखाई देगा।

पृथ्वी पर १०% लोंग ध्यान करनें लगे तो पृथ्वी पर विद्यमान लगभग सभी समस्यायों का नष्ट इसी ध्यान  की शक्ति से हो सकता है।

उदारहण के लिए हम बात करें
" महर्षि महेश योगीजी " की , जीन्होने सन् १९९३ में अमरीकी वैज्ञानिकों के समक्ष यह सिद्ध किया था ।

हुआ यूं कि उन्होने वॉशिंगटन डि सी में ४००० अध्यापको को बुलाकर एक साथ *ध्यान* (मेडिटेशन) करने को कहा और चमत्कारीक परिणाम यह था कि , शहर का क्राईम रिपोर्ट मे ५०% तक की कमी पायी गई थी ।

वैज्ञानिकों को तो इस का कारण समझ नहीं आया पर उन्होनें इसे
" महर्षि इफेक्ट " यह नाम दिया था ।

भाईयों यह ताकत है " *ध्यान* " मे ।

यदी हम हमारे आध्यात्मिक यश पर श्रम करे तो इस जगत को अधिक से अधिक लाभ सकता है ।

" *जरुरत है ध्यान से स्वत: को खोजनें की* "

Sunday, May 14, 2017

गुरु अंगद देव

गुरु नानक साहेब ने एक दिन अजब वेश बनाया,,काले वस्त्र,,हाथ
में चिमटा,,एक झोला,कुछ खूंखार कुत्ते,,बिलकुल काल भैरव से बन
कर करतारपुर नगर से बाहर की तरफ जाने लगे,,,उनके अनुसरण करते
सारी संगत भी साथ ही चल पड़ी,,,,कुछ दूर चल कर गुरु नानक साहब
ने मुड़ कर देखा तो अपने झोले में हाथ डाला और सोने के सिक्के
निकाले और संगत की तरफ उछाल दिए,,,और आगे बढ़ गए,,,,कुछ लोग
वो सिक्के इक्कठे करने लग गए और वहीं रुक गए,,,,गुरु नानक आगे चले
गए,,,,फिर कुछ दूर जा कर झोले से हीरे निकाले और संगत की तरफ
फेंके,,,,फिर कुछ आगे जा कर रत्न,,,फिर कुछ आगे जा कर पन्ने,,,हर
बार कुछ ना कुछ लोग संगत से कम होते गए
जब कुछ लोग ही गुरु साहब के पीछे रह गए तो महाराज ने उन पर
खुंख़ार कुत्ते छोड़ दिए,,,अब सब लोग भाग गए बस दो सिख रह गए
भाई लहणा और बाबा बुढ़ा जी,,,अब गुरु नानक साहेब ने उनको
चिमटे से पीटना शुरू कर दिया पर वो मौन रह कर मार खाते रहे,,,,
गुरु नानक आगे चल पड़े,,,, दोनों फिर पीछे चल पड़े,,,गुरु नानक साहब
ने बाबा बुढ़ा जी को रुकने का इशारा किया तो वो वही हाथ
जोड़ कर रुक गए,,, गुरु जी ने कहा,,लहणे देख सारे मुझे छोड़ कर चले
गए,,मेरा सबसे बड़ा सेवक बुढ़ा भी रुक गया तूँ क्यों नही जाता
भाई लहणे ने कहा :- सतगुरु,,,जिनको तुझसे सन्तान के वर की आस
थी वो मुरादे पा कर मुड़ गए,,कोई सोने को चाहने वाला सोना ले
के,,हीरे की चाह वाला हीरे ले के,,,,कोई तेरी रम्ज़ में छुपे भले को
नही देख पाया तो तेरे दिए दुख से डर के चला गया,,,किसी को तूने
रुकने का इशारा कर दिया तो वो तेरे हुक्म में रुक गया,,,लेकिन
दाता,,,मैं कहाँ जाऊँ मेरा कुटम्ब भी तूँ,,मेरी ओट भी तूँ,,,मेरा
आसरा भी तूँ,,,मेरा बल भी तूँ,,,मेरी बुद्धि भी तूँ, मेरा धन भी तूँ,,,मैं
आप के बिना अपने जीवन की कलपना भी नही कर सकता,,, गुरु
नानक साहब नें जब ये सुना तो कहा लहणे जब तेरा सब कुछ मैं हूँ तो
ठीक है वहां जो वो एक मुर्दा शरीर पड़ा है जा वो मुर्दा खा कर
आ,,,,भाई लहणे उठ कर उस मुर्दे के निकट गए और बैठ गए,,,गुरु नानक
बोले लहणे बैठा क्यों है मुर्दा खा
भाई लहणे ने हाथ जोड़ कर कहा:-सतगुरु कहाँ से खाना शुरू करू पैर
की तरफ से या सिर की तरफ से,,,,हुक्म हुआ सिर की तरफ से
खा,,,,भाई लहणे ने जब कफ़न हटाया तो वहाँ कोई मुर्दा था ही
नही,,,,गुरु नानक साहब दौड़ करआए और भाई लहणे को गले से लगा
लिया और कहा भाई लहणे,,,तूने सतगुरु को अपना सब कुछ माना
है,,,तेरी सेवा धन्य है,,,आज तू मेरे अंग लगा है आज से ये संसार तुझे गुरु
अंगद देव के नाम से जानेगा,,

अपनी जिम्मेदारी

👍👍 एक वकील साहब ने अपने बेटे का रिश्ता तय किया।

कुछ दिनों बाद, वकील साहब होने वाले समधी के घर गए तो देखा कि होने वाली समधन खाना बना रही थीं।

सभी बच्चे और होने वाली बहु टी वी देख रहे थे। वकील साहब ने चाय पी, कुशल जाना और चले आये।

एक माह बाद, वकील साहब समधी जी के घर, फिर गए। देखा, समधन जी झाड़ू लगा रहीं थी, बच्चे पढ़ रहे थे और होने वाली बहु सो रही थी। वकील साहब ने खाना खाया और चले आये।

कुछ दिन बाद, वकील साहब किसी काम से फिर होने वाले समधी जी के घर गए !! घर में जाकर देखा, होने वाली समधन बर्तन साफ़ कर रही थी, बच्चे टीवी देख रहे थे और होने वाली बहु खुद के हाथों में नेलपेंट लगा रही थी।

वकील साहब ने घर आकर, गहन सोच-विचार कर लड़की वालों के यहाँ खबर पहुचाई, कि हमें ये रिश्ता मंजूर नहीं है"

...कारण पूछने पर वकील साहब ने कहा कि, "मैं होने वाले समधी के घर तीन बार गया !!

तीनों बार, सिर्फ समधन जी ही घर के काम काज में व्यस्त दिखीं। एक भी बार भी मुझे होने वाली बहु घर का काम काज करते हुए नहीं दिखी। जो बेटी अपने सगी माँ को हर समय काम में व्यस्त पा कर भी उन की मदद करने का न सोचे, उम्र दराज माँ से कम उम्र की, जवान हो कर भी स्वयं की माँ का हाथ बटाने का जज्बा न रखे,,, वो किसी और की माँ और किसी अपरिचित परिवार के बारे में क्या सोचेगी।

"मुझे अपने बेटे के लिए एक बहु की आवश्यकता है, किसी गुलदस्ते की नहीं, जो किसी फ्लावर पाटॅ में सजाया जाये !!

👉इसलिये सभी माता-पिता को चाहिये, कि वे इन छोटी छोटी बातों पर अवश्य ध्यान देंवे।

🌹बेटी कितनी भी प्यारी क्यों न हो, उससे घर का काम काज अवश्य कराना चाहिए।

🌹समय-समय पर डांटना भी चाहिए, जिससे ससुराल में ज्यादा काम पड़ने या डांट पड़ने पर उसके द्वारा गलत करने की कोशिश ना की जाये।

🌹हमारे घर बेटी पैदा होती है, हमारी जिम्मेदारी, बेटी से "बहु", बनाने की है।

🌹अगर हमने, अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से नहीं निभाई, बेटी में बहु के संस्कार नहीं डाले तो इसकी सज़ा, बेटी को तो मिलती है और माँ बाप को मिलती हैं, "जिन्दगी भर गालियाँ"।

🌹हर किसी को सुन्दर, सुशील बहु चाहिए। लेकिन भाइयो, जब हम अपनी बेटियों में, एक अच्छी बहु के संस्कार, डालेंगे तभी तो हमें संस्कारित बहु मिलेगी? ?

👉ये कड़वा सच, शायद कुछ लोग न बर्दाश्त कर पाएं ....लेकिन पढ़ें और समझें, बस इतनी इलतिजा..

🌹🍁वृद्धाआश्रम में माँ बाप को देखकर सब लोग बेटो को ही कोसते हैं, लेकिन ये कैसे भूल जाते हैं कि उन्हें वहां भेजने में किसी की बेटी का भी अहम रोल होता है। वरना बेटे अपने माँ बाप को शादी के पहले वृद्धाश्रम क्यों नही भेजते।

Saturday, May 13, 2017

एक चुटकी ज़हर रोजाना

"एक चुटकी ज़हर रोजाना"

आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली।
आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा।
दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी.
एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई।
आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…”
बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.”
लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा ….
अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !”
कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?”
“क्या करना होगा ?”, आरती ने पूछा.
पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है।
कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.”
पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी।
यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?”
आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई.
ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया।
साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती।
रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती।
सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।

कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।
धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी।
किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी।
बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी।
छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी।
जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी।
इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … !
वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”
पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा !!!”

"बेटी को सही रास्ता दिखाये,
माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे"
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Thursday, May 11, 2017

जीवन की सच्चाई

*जीवन की सच्चाई*
                   
☝🏻 एक आदमी की चार ✌🏻✌🏻पत्नियाँ थी ।

वह अपनी ✌🏻✌🏻चौथी पत्नी  से  बहुत प्यार  करता था और
उसकी खूब देखभाल करता व उसको सबसे श्रेष्ठ देता ।

वह अपनी ✌🏻☝🏻तीसरी पत्नी से भी प्यार करता था और
हमेशा उसे अपने  मित्रों  को  दिखाना  चाहता था ।
हालांकि उसे हमेशा डर था की वह कभी भी किसी
दुसरे इंसान के साथ भाग सकती है ।

वह अपनी ✌🏻दूसरी पत्नी से भी प्यार करता था । जब
भी उसे कोई परेशानी आती तो वे अपनी दुसरे नंबर
की पत्नी के  पास  जाता  और  वो  उसकी  समस्या
सुलझा देती ।

वह अपनी ☝🏻पहली पत्नी से प्यार नहीं करता था
जबकि पत्नी उससे बहुत गहरा प्यार करती थी
और उसकी खूब देखभाल करती ।

एक दिन वह बहुत बीमार पड़  गया और  जानता था
की जल्दी ही वह मर जाएगा । उसने  अपने  आप से
कहा, "मेरी चार पत्नियां हैं, उनमें से मैं एक को अपने
साथ ले जाता हूँ..जब मैं मरूं तो वह मरने में मेरा साथ
दे ।"

तब उसने चौथी पत्नी से अपने साथ आने को कहा
तो वह बोली, "नहीं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता और
चली गयी ।

उसने तीसरी पत्नी से पूछा तो वह बोली की,
"ज़िन्दगी बहुत अच्छी है यहाँ जब तुम मरोगे
तो मैं दूसरी शादी कर लूंगी ।"

उसने दूसरी पत्नी से कहा तो वह बोली, "माफ़ कर
दो, इस बार मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती ।
ज्यादा से ज्यादा मैं तुम्हारे दफनाने तक तुम्हारे साथ
रह सकती हूँ ।"

अब तक उसका दिल बैठ  सा  गया और  ठंडा  पड़
गया । तब एक आवाज़ आई, "मैं तुम्हारे साथ चलने
को तैयार हूँ । तुम जहाँ जाओगे मैं तुम्हारे साथ चलूंगी ।"

उस आदमी ने जब देखा तो  वह  उसकी पहली
पत्नी थी । वह बहुत बीमार सी हो गयी थी खाने
पीने के अभाव में ।

वह आदमी पश्चाताप के आंसूं के साथ बोला,
"मुझे तुम्हारी अच्छी देखभाल  करनी चाहिए
थी और मैं कर सकता था ।"

दरअसल हम सब की चार पत्नियां हैं जीवन में ।

1. चौथी पत्नी हमारा शरीर है ।
हम चाहें जितना सजा लें संवार लें पर जब हम
मरेंगे तो यह हमारा साथ छोड़ देगा ।

2. तीसरी पत्नी है हमारी  जमा  पूँजी, रुतबा ।
जब हम मरेंगे तो ये दूसरों के पास चले जायेंगे।

3. दूसरी पत्नी है हमारे दोस्त व रिश्तेदार । चाहें वे
कितने भी करीबी क्यूँ ना हों हमारे जीवन काल में
पर मरने के बाद हद से हद वे हमारे अंतिम संस्कार
तक साथ रहते हैं ।

4. पहली पत्नी हमारी आत्मा है, जो सांसारिक
मोह माया में हमेशा उपेक्षित रहती है ।

यही वह चीज़ है जो हमारे साथ रहती है जहाँ भी
हम जाएँ.......कुछ देना है तो  इसे दो.... देखभाल
करनी है तो इसकी करो.... प्यार करना है तो इससे
करो...

             मिली थी जिन्दगी
      किसी के 'काम' आने के लिए..

           पर वक्त बीत रहा है
     कागज के टुकड़े कमाने के लिए..                       
   क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
ना कफन मे 'जेब' है ना कब्र मे 'अलमारी..'

       और ये मौत के फ़रिश्ते तो
           'रिश्वत' भी नही लेते...  ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
✔इसे सिर्फ अपने तक ही मत रखिए ....

🙏🏻  🙏🏻

Tuesday, May 9, 2017

Enlightenment is above all bondage.

Richness take you to the seclusion. Knowledge take you to the seclusion.
Poverty and silliness keep you bind. Enlightenment is above all bondage.

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