*वेलाम सुत्त* :
*(अंगुत्तर निकाय)*
*एक बार तथागत भगवान बुद्ध अनाथपिण्डिक से बोले :*
*अन्नदान रूखा-सूखा हो या उत्तम, जब वह अन्नदान श्रद्धा पुर्ण चित्त से, सत्कारपूर्वक, प्रसन्न मन से, शुद्ध चित्त से, अपने हाथ से दिया जाने पर, "यह पुनः लौटेगा" ऐसा सोचकर दिया जाने पर, उस दान का बहुत अच्छा फल प्राप्त होता है ।*
उस दान के परिणामस्वरूप दाता को लंबे समय तक, अनेक जन्मों तक अच्छा भोजन, अच्छे वस्त्र, अच्छा यान उपलब्ध होते हैं । अधिक से अधिक पञ्चकामभोग उपलब्ध होते हैं । उसके स्त्री, पुत्र, पौत्र, परिवार जन, नौकर भी धर्म श्रवण में मन लगाते हैं । धर्म को जानने, समझने का प्रयास करते हैं । वह किस लिये ? वह इसलिए कि, श्रद्धा पुर्ण चित्त से, सत्कारपूर्वक, प्रसन्न मन से, शुद्ध चित्त से, अपने हाथ से दिये दान का यही फल होता हैं ।
*लेकिन अगर वह अन्नदान अश्रद्धा पुर्ण चित्त से, असत्कारपूर्वक, अप्रसन्न मन से, अशुद्ध चित्त से दिया जाने पर, अपने हाथ से न दिया जानेपर, फेंक कर दिया जाने पर, "यह पुनः लौटकर नहीं आयेगा" ऐसा सोचकर दिया जाने पर, उस दान का बहुत अच्छा फल नहीं प्राप्त होता है ।*
उस दान के परिणामस्वरूप न दाता को अच्छा भोजन, अच्छे वस्त्र, अच्छा यान उपलब्ध होते हैं । न उसके स्त्री, पुत्र, पौत्र, परिवार जन, नौकर धर्म श्रवण में मन लगाते हैं । न धर्म को जानने, समझने का प्रयास करते हैं । वह किस लिए, वह इसलिए कि, अश्रद्धा पुर्ण चित्त से, असत्कारपूर्वक, अप्रसन्न मन से, अशुद्ध चित्त से दिये दान का यही फल होता है ।
पहले कभी कोई वेलाम नामक ब्राह्मण हुआ था ।
उसने ऐसा महादान किया था : चौरासी हजार कन्या दान, चांदी से भरी हुई चौरासी हजार सोने की थालीयाँ, सोने से भरी हुई चौरासी हजार चांदी की थालीयाँ, सोने से भरी हुई चौरासी हजार कांस्य की थालीयाँ, विविध स्वर्णालंकारों से मण्डित, सुवर्ण ध्वजा युक्त तथा सुवर्ण जाल निर्मित लवादा से आच्छादित चौरासी हजार हाथी, सिंहचर्म, व्याघ्रचर्म तथा द्वीपचर्म से आवृत्त, विविध स्वर्णालंकारों से मण्डित, सुवर्ण ध्वजा युक्त तथा सुवर्ण जाल निर्मित लवादा से आच्छादित चौरासी हजार रथ, चौरासी हजार गौएं, चौरासी हजार महल (सभी मुल्यवान सामग्री से संपन्न) दान दिया ।
खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य आदि खाने पीने के पदार्थों की तो कोई कमी ही नहीं थी । मानो उनकी नदीयाँ बह रही हो । इतना बड़ा महा दान किया था ।
बुद्ध आगे बोले: गृहपति, वह वेलाम नामक ब्राह्मण कोई और नहीं, बल्कि मैं ही वह वेलाम नामक ब्राह्मण था ।मैने ही वह महा दान किया था । उस समय दान से कोई भी वंचित नहीं रह गया था ।
गृहपति, वेलाम ब्राह्मण के उस *महा दान से भी अधिक फलप्रद है- किसी सम्यक दृष्टि संपन्न (श्रोतापन्न) एक भिक्षु को (साधक को) श्रद्धा पुर्ण चित्त से एक बार का दिया हुआ भोजन दान ।*
100 श्रोतापन्न को दिए भोजन दान से भी अधिक फलप्रद है एक सकृदागामी को एक समय का भोजन दान ।
*100 सकृदागामी को दिए भोजन दान से भी अधिक फलप्रद है एक अनागामी को एक समय का भोजन दान ।*
100 अनागामी को दिए भोजन दान से भी अधिक फलप्रद है एक अरहंत को एक समय का भोजन दान ।
*100 अरहंत को दिए भोजन दान से भी अधिक फलप्रद है एक पच्चेकबुद्ध को एक समय का भोजन दान ।*
100 पच्चेक बुद्धों को दिए भोजन दान से भी अधिक फलप्रद है एक सम्यक सम्बुद्ध को एक समय का भोजन दान ।
*सम्यक संबुद्ध को दिए भोजन दान से भी 100 गुना अधिक फलप्रद है बुद्ध प्रमुख भिक्षु संघ को भोजन दान ।*
भिक्षु संघ को दिए भोजन दान से भी अधिक फलप्रद है, सभी दिशाओं के भिक्षु संघ के लिए बुद्ध प्रमुख भिक्षु संघ को विहार का दान ।
*बुद्ध प्रमुख भिक्षु संघ को दिए विहार दान से भी अधिक फलप्रद है- पांच शीलोंका का दृढ़ता से पालन करते हुए सदा के लिए बुद्ध, धर्म और संघ के प्रति समर्पित होना ।*
उससे भी अधिक फलप्रद है गंधमात्र भी मंगल मैत्री की भावना करें ।
*उस से भी अधिक फलप्रद है चुटकी बजाने जितने समय के लिए भी या पलक झपके इतने समय के लिए भी अनित्य-संज्ञा की भावना करें (अनित्यबोध हो) ।*
*🌷सबका मंगल हो 🌷*
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